मंडेला नहीं बनना चाहते थे राष्ट्रपति – DW – 06.12.2013
  1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

मंडेला नहीं बनना चाहते थे राष्ट्रपति

६ दिसम्बर २०१३

अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला कभी नहीं चाहते थे कि वो देश के पहले काले राष्ट्रपति बनें. उनकी इच्छा थी कि कोई युवा देश की कमान संभाले. मंडेला के बारे में ये जानकारी एक किताब में सामने आई.

https://p.dw.com/p/Pc6d
Archivbild- Nelson Mandela mit Graca Machel in Mosambik
तस्वीर: picture-alliance/dpa

कन्वर्सेशन विद माइसेल्फ में मंडेला ने लिखा है कि अफ्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस के नेताओं के बहुत दबाव डालने पर उन्होंने देश का राष्ट्रपति बनने की रजामंदी दी. मंडेला ने कहा," दक्षिण अफ्रीका में पहली बार लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए राष्ट्रपति का पद उन पर उनकी मर्जी के बगैर लादा गया."

ये किताब नेल्सन मंडेला फाउंडेशन ने उनके लिखे पत्रों, इंटरव्यू, और उनकी अप्रकाशित जीवनी के अंशों को जोड़ कर बनाई है. किताब की भूमिका अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने लिखी है.

Dossier Nelson Mandela Bild 2
रंगभेद के खिलाफ लंबा संघर्ष किया मंडेला नेतस्वीर: picture-alliance/dpa

किताब में इस बात का जिक्र है कि नेल्सन मंडेला कोई पद लिए बगैर नए दक्षिण अफ्रीका की सेवा करना चाहते थे. यहां तक कि वो अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस में भी कोई पद नहीं चाहते थे. कांग्रेस के नेताओं के दबाव डालने पर उन्होंने खुद को इसके लिए तैयार किया हालांकि उन्होंने पहले ही ये शर्त रख दी कि वो सिर्फ पांच साल के लिए ही राष्ट्रपति बनेंगे.

11 फरवरी 1990 को जब 27 साल तक जेल में रहने के बाद नेल्सन मंडेला बाहर निकले तो देश उनके बताए रास्ते पर दौड़ पड़ा. देश में लोकतंत्र की बयार चली और पहली बार 1994 में सभी नस्लों को वोट देने के अधिकार के साथ ऐतिहासिक चुनाव हुए. इन चुनावों में जीत ने मंडेला को देश के पहले काले राष्ट्रपति के रूप स्थापित कर दिया.

गोरे और काले लोगों के बीच मेलमिलाप राष्ट्रपति के कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि थी. हालांकि इस किताब में मंडेला की कैद का उनके परिवार पर पड़े असर का भी जिक्र किया गया है. अपनी पूर्व पत्नी विनी मंडेला को लिखे एक पत्र में मंडेला ने अपने गुस्से और दुख का इजाहार किया है. विनी दूर के एक शहर में रही थीं और सुरक्षाकर्मी और पुलिस उन्हें अकसर परेशान करते. मंडेला ने लिखा था," मेरे जिस्म का हरेक हिस्सा जख्म बन गया है, और मेरा मांस, खून, हड्डियां, आत्मा सब विषैले हो गए हैं. मैं एक दम बेबस हूं और इन मुश्किल हालातों में तुम्हारी कोई मदद नहीं कर पा रहा."

1969 में एक कार हादसे में अपनी मां और बेटे को खो चुके मंडेला जब उनके अंतिम संस्कार में भी नहीं शामिल हो सके तो उनके दुख की सीमा नहीं थी. उन्होंने लिखा," मुझे सफलता की कोई उम्मीद नहीं है, मेरा दिल इस सच्चाई को जानने के बाद टूट कर बिखर गया कि मैं श्मशान में अपनी मां के पास नहीं जा सका. ये ऐसा मौका होता है जब कोई भी मां-बाप अपने औलाद की गैरमौजूदगी नहीं चाहते."

किताब में मंडेला की जिंदगी से जुड़े कुछ हल्के फुल्के पलों का भी जिक्र है. मंडेला ने लिखा है कि जेल में रहने के दौरान 1987 में उन्होंने ये कहते हुए लैटिन पढ़ने के लिए आवेदन दिया, "मैं 1944 में लैटिन पढ़ चुका हूं लेकिन व्यवहारिक रूप से मैं सबकुछ भूल चुका हूं." जेल से छूटने के तुरंत बाद एक पत्रिका ने उनकी तस्वीर खींचने के लिए करीब डेढ़ लाख अमेरिकी डॉलर देने का ऑफर दिया. मंडेला ने लिखा है कि मैंने ऑफर ठुकरा दिया और गरीब बना रहा, आप जानते हैं गरीब होना एक बड़ी दुखद बात है. जेल में रहने के दौरान नेल्सन मंडेला को इस बात की भी चिंता थी कि बाहर के लोग उन्हें संत समझ रहे हैं जबकि वो खुद को ऐसा नहीं मानते थे.

रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन

संपादनः महेश झा