जापान में दूसरे विश्व युद्ध जैसी तबाही – DW – 14.03.2011
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जापान में दूसरे विश्व युद्ध जैसी तबाही

१४ मार्च २०११

जापान में हालात बिगड़ते जा रहे हैं. मरने वालों की तादाद बढ़ रही है और लोगों में परमाणु विकिरण फैलने के मामले भी सामने आ रहे हैं. अर्थव्यवस्था को भी भारी झटका लगा है.

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तस्वीर: AP/NHK TV

जापान में भूकंप और सूनामी के बाद हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं. उत्तर पूर्वी जापान के ज्यादातर हिस्से में सड़कों और रेल की पटरियों को भारी नुकसान पहुंचा है. पूरे देश में बिजली की भारी कमी है. जापान को अब तक 170 अरब डॉलर का नुकसान हो चुका है. जानकारों का मानना है कि देश की अर्थव्यवस्था मंदी में भी जा सकती है.

विश्व युद्ध की याद

अधिकारियों के अनुसार कम से कम 10,000 लोगों के मारे जाने की आशंका है. क्योडो न्यूज़ एजेंसी ने बताया कि सोमवार को दो तटीय इलाकों में 2,000 शव मिले हैं. उत्तर पू्र्व तटीय इलाके के ऑत्सुची शहर में रेड क्रॉस फेडरेशन के पेट्रिक फियुलर ने बताया, "ये नर्क का दृश्य है, बिलकुल एक बुरे सपने जैसा. यहां की स्थिति कल्पना के परे है. सब कुछ तबाह हो गया है. सरकार कह रही है कि 9,500 लोग मारे गए है. यह यहां की आधी आबादी से ज्यादा है."

Japan Tokio Erdbeben Flash-Galerie
तस्वीर: dapd

ऑत्सुची शहर के बारे में जापान में रेड क्रॉस के निदेशक तादातेरू कोनोए ने कहा, "रेड क्रॉस में अपने इतने लम्बे सफर में मैंने कई आपदाएं देखी हैं, लेकिन इस से बुरा मैंने कभी कुछ नहीं देखा. ऑत्सुची को देख कर मुझे द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के ओसाका और टोक्यो की याद आ रही है जब सब कुछ नष्ट हो गया था." सरकार के अनुसार 20 लाख घरों में बिजली कट गई है और 14 लाख लोगों के पास पीने का पानी नहीं है. करीब एक लाख घरों में बिजली कट गई है.

परमाणु विकिरण का खतरा

सब से बड़ा खतरा फुकुशिमा परमाणु संयंत्र के आस पास बना हुआ है जहां शनिवार को और फिर सोमवार को दो रिएक्टरों में धमाके हुए और आसमान में सफेद धुंआ उठता हुआ देखा गया. 1986 में चेर्नोबिल में हुए हादसे के बाद इसे सब से बुरा हादसा माना जा रहा है. हादसे ने परमाणु सुरक्षा पर भी सवालिया निशान लगा दिया है. जापान में कुल 54 रिएक्टर हैं, जिनमें से 11 भूकंप के कारण बंद हो गए हैं. जापान में पैदा होने वाली बिजली का 30 फीसदी हिस्सा परमाणु संयंत्रों से आता है.

Flash-Galerie Japan Erdbeben Tsunami
तस्वीर: AP

परमाणु विशेषज्ञों का मानना है कि परमाणु ऊर्जा के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है कि रिएक्टर को ठंडा करने के लिए समुद्र के पानी का इस्तेमाल किया जा रहा है. वैज्ञानिक मानते हैं कि इस से यह साफ है कि जापान में एक बहुत बड़ा हादसा होने वाला है. कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस के मार्क हिब्स ने बतया, "रिएक्टर में समुद्र का पानी भरना अंतिम विकल्प जैसा है. यह नियमों के अनुसार नहीं है."

जापान के एक अधिकारी ने इस बात की पुष्टि की कि 22 लोगों में विकिरण का असर देखा गया है. अधिकारियों के अनुसार 190 लोगों में विकिरण का असर देखे जाने की आशंका है. दक्षिण कोरिया, हांग कांग, सिंगापुर और फिलिपीन्स ने कहा है कि वो जापान से आयात खाद्य पदार्थों की रेडिएशन के लिए जांच करेंगे.

रिपोर्ट: एजेंसियां/ईशा भाटिया

संपादन: एन रंजन

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