मुर्गियों के सहारे जंग में जिंदा रहने वाली जिनाइदा – DW – 15.04.2022
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समाजयूक्रेन

मुर्गियों के सहारे जंग में जिंदा रहने वाली जिनाइदा

१५ अप्रैल २०२२

उन्होंने दो विश्वयुद्ध झेले. सोवियत संघ का विघटन देखा और अब अपने देश यूक्रेन को झुलसता देख रही हैं. 82 साल की जिनाइदा के मुताबिक, युद्ध उन्हें अपनी मुर्गियों की अहमियत समझाते हैं.

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अपनी मुर्गी के साथ 82 साल की जिनाइदा माकीशाइवा
अपनी मुर्गी के साथ 82 साल की जिनाइदा माकीशाइवातस्वीर: Zohra Bensemra/REUTERS

मार्च 2022 की शुरुआत में जब रूसी टैंक सीमा पार कर यूक्रेन के बोरोदिआन्का में घुसने लगे तो 82 साल की जिनाइदा माकीशाइवा ज्यादा चिंतित नहीं हुईं. लेकिन कुछ दिन बाद उनके के घर पर एक रॉकेट गिरा. रॉकेट ने जिनाइदा का मुर्गी बाड़ा तबाह कर दिया.

जिनाइदा कहती हैं, "दरवाजा उड़ गया. मैंने मुर्गियों जमा किया क्योंकि खाने के लिए मेरे पास कुछ तो होना चाहिए. उस वक्त मेरे पास पेट भरने के लिए सिर्फ आलू बचे थे. ना पानी था, ना ही गैस बची थी. कुछ नहीं था."

इसके बाद रूसी बमबारी आए दिन होने लगी. बमबारी में जिनाइदा के एक पड़ोसी की मौत भी हो गई. यूक्रेन की राजधानी कीव के उत्तर में बसे बोरोदिआन्का में रूसी सैनिक रोज दिखाई देने लगे.

अब जिनाइदा के साथ घर के भीतर रहती हैं मुर्गियां
अब जिनाइदा के साथ घर के भीतर रहती हैं मुर्गियांतस्वीर: Zohra Bensemra/REUTERS

दो विश्वयुद्धों के बाद लंबा शीत युद्ध और फिर सोवियत संघ का विघटन देख चुकीं जिनाइदा के मुताबिक, कई दशकों बाद उनका पुराना डर लौटने लगा, "घबराहट शब्द उस भावना को पूरी तरह बयान नहीं कर सकता है जो मेरे भीतर थी. मुझे लगा कि मैं मर चुकी हूं, किसी चीज का ध्यान नहीं रहा. बमबारी के कारण मैं लकड़ियां बटोरने भी नहीं जा सकी. वे इसी तरह सारे घरों को तबाह कर रहे हैं. एक मिसाइल और सारे घर साफ."

जिनाइदा ने अपनी सारी जिंदगी गांव के माहौल में गुजारी है. बचपन से ही वह घर और फार्म का काम करती आ रही हैं. जिंदगी की इस यात्रा में उन्हें अपनी मुर्गियां सबसे जरूरी लगती हैं. जिनाइदा कहती हैं कि इन मुर्गियों के कारण मेरे पास अपना और एक दो लोगों का पेट भरने के लिए कुछ तो है.

जिनाइदा उन लोगों में से हैं, जिन्हें पहले युद्ध से बहुत ज्यादा मतलब नहीं था. हालांकि धीरे धीरे उनके विचार बदलने लगे. 82 साल की बुजुर्ग कहती हैं कि एक दिन कई रूसी सैनिक उनके घर में दाखिल हुए. जिनाइदा के मुताबिक रूसी सैनिकों ने कहा, "तहखाने में जाओ, बूढ़ी ...(अपमानजनक शब्द)."  इसके जवाब में जिनाइदा ने कहा, "मुझे मार डालो, लेकिन मैं वहां नहीं जाऊंगी."

जिनाइदा के घर के आस पास फैले तबाही के निशान
जिनाइदा के घर के आस पास फैले तबाही के निशानतस्वीर: Zohra Bensemra/REUTERS

फायरिंग और बमबारी के बीच जिंदा रहने का संघर्ष

भीषण संघर्ष के दौरान भूखी जिनाइदा ने पास के कुएं से पानी लाने का फैसला किया. इसी तरह फायरिंग और बमबारी के बीच वह जान जोखिम में डालकर लकड़ियां भी जुटाने लगीं. कई दिन ऐसे भी गुजरे जब जिनाइदा ने सिर्फ कच्चे अंडे खाकर काम चलाया. जिनाइदा का एक बेटा और तीन पोते हैं. परिवार के ये सदस्य यूक्रेन के अलग अलग हिस्सों में रहते हैं.

एक महीने के संघर्ष के बाद अप्रैल की शुरुआत में यूक्रेनी सेना ने बोरोदिआन्का से रूसी सेना को खदेड़ दिया. जिनाइदा कहती हैं कि अब वे 30 दिन बाद सकून से सो पा रही हैं. रूसी सेना के निकलने के बाद जिनाइदा अब हर दिन तीन घंटे, आस पास के इलाकों का चक्कर लगाती हैं. उन्हें कहीं रूसी सेना के टैकों के परखच्चे दिखते हैं तो कहीं बारूद से उड़े मकान. 

जिनाइदा के घर के बाहर खड़ी उनके बेटे की कार में घुसी गोली
जिनाइदा के घर के बाहर खड़ी उनके बेटे की कार में घुसी गोलीतस्वीर: Zohra Bensemra/REUTERS

जिनाइदा कहती हैं, "अब शांति है. रेडियो फिर से चलने लगा है. पिछला एक महीना तो हर तरह के अभाव में गुजरा. किसी से बातचीत भी नहीं हुई. अब भी मैं अपने कुत्ते और अपनी बिल्ली के अलावा बहुत कम आवाजें सुनती हूं. कभी कभी तो ऐसा सन्नाटा होता है कि ऐसा लगने लगता है जैसे मैं बहरी तो नहीं हो गई हूं."

यूक्रेन और रूस के भविष्य के बारे में पूछने पर वह कहती हैं,"जो भगवान तय करेगा वही होगा. मैं दो युद्ध झेल चुकी हूं और अब ये है. मैं तो बस यही प्राथर्ना कर सकती हूं कि ये गुजर जाए और लड़ाई वापस ना लौटे."

युद्ध के बाद ऐसा दिखता है जिनाइदा का कस्बा
युद्ध के बाद ऐसा दिखता है जिनाइदा का कस्बातस्वीर: Zohra Bensemra/REUTERS

शांति के कोई आसार नहीं

अक्टूबर 2021 में यूक्रेन और रूस की सीमा पर रूसी सेना का जमावड़ा लगना शुरू हुआ. रूस ने करीब पांच महीने तक इस सैन्य जमावड़े को सामान्य सैन्य अभ्यास करार दिया. दिसंबर से फरवरी मध्य तक अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के प्रमुख, फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों और जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स मॉस्को भी गए. पुतिन ने इन सभी अधिकारियों से कहा कि रूस यूक्रेन पर हमले की कोई योजना नहीं बना रहा है.

अमेरिका और ब्रिटेन की चेतावनियों के बीच यूरोप और यूक्रेन के शीर्ष नेताओं को भी लगता रहा कि अमेरिका युद्ध का माहौल बनाने की कोशिश कर रहा है. तभी 24 फरवरी 2022 की तड़के रूसी सेना अंतरराष्ट्रीय सीमा पार कर यूक्रेन में दाखिल हो गई. तब से क्षेत्रफल के लिहाज से यूरोप के सबसे बड़े देश यूक्रेन में भीषण संघर्ष छिड़ा हुआ है. संघर्ष के कारण अब तक करीब चार करोड़ लोग यूक्रेन से भागकर दूसरे देशों में शरण ले चुके हैं.

24 फरवरी 2022 को शुरू हुए रूसी हमले ने यूक्रेन के शहर मारियोपोल का ये हाल कर दिया
24 फरवरी 2022 को शुरू हुए रूसी हमले ने यूक्रेन के शहर मारियोपोल का ये हाल कर दियातस्वीर: Alexander Ermochenko/REUTERS

युद्ध रोकने के लिए बेलारूस में रूस और यूक्रेन के अधिकारियों की कई बार बेनतीजा बातचीत हुई. बाद में तुर्की ने भी दोनों पक्षों को बातचीत की मेज पर बैठाया. इस्तांबुल में हुई बातचीत के बाद शांति की हल्की सी उम्मीद जगी थी. लेकिन अब पुतिन का कहना है कि उन्हें बीती बातचीतों से कोई बड़ी उम्मीद नहीं है.

ओएसजे/एनआर (रॉयटर्स, एएफपी)

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