सूख रही है तेल की धार – DW – 06.05.2009
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सूख रही है तेल की धार

६ मई २००९

हमारे तेल भंडार कब तक हमारा साथ देंगे? अपने आर्थिक और औद्योगिक विकास के लिए जीवाश्म ईंधनों पर हम जिस तरह निर्भर हैं, उसे देखते हुए शायद अगले चार-पांच दशकों तक ही.

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गुजरात के इंगोली गांव में तेल की निकासीतस्वीर: AP

इस 21 वीं सदी में हमें ऊर्जा के नये भंडार चाहिये. जीवाश्म ईंधन कहलाने वाले तेल, गैस और कोयले के हमारे वर्तमान भंडार अगले चार-पांच दशकों में सूख जायेंगे. पर, क्या इतने कम समय में कोई विकल्प संभव हो पायेगा? इस समय हम अपने दैनिक जीवन में जिन ढेर सारी चीज़ों को इस्तेमाल करते हैं, उनका निर्माण या उत्पादन प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से तेल पर ही तो निर्भर है.

तेल कंपनियां हैं कि वे अंतिम बूँद तक धरती को दुहने पर लगी हैं. रूस, अमेरिका, ईरान, मेक्सिको, वेनेज़ुएला-- सब जगह तेल के कुँए गहरे और तेल की मात्रा कम होती जा रही है. जर्मन भूवैज्ञानिक वोल्फ़गांग ब्लेंडिंगर का मानना है कि हम विश्वव्यापी तेल उत्पादन क्षमता के शिखर को पार कर चुके हैं. अब समय आ रहा है तेल की तंगी का.

ऊर्जा एजेंसी की चेतावनी

पेरिस स्थित अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी IEA गत फ़रवरी में चेतावनी दे चुकी है कि हम एक ऐसे नये तेल संकट की तरफ़ बढ़ रहे हैं, जो वर्तमान वित्तीय संकट से भी भयावह होगा. एजेंसी के मुख्य अर्थशास्त्री फ़ेथ बाइरल कहते हैं:

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वेनेज़ुएला का एक आधुनिक टैंकर बंदरगाहतस्वीर: DW/Steffen Leidel

"वर्तमान तेल भंडार में आ रही कमी को पूरा करने के लिए और, जहां हम हैं, वहीं बने रहने के लिए, हमें चार नये साउदी अरब खोजने होंगे."

कहने का मतलब है कि मांग और पूर्ति के बीच की खाई को पाटने के लिए उस मात्रा का चौगुना अतिरिक्त तेल चाहिये, जो आज साउदी अरब निर्यात करता है. जबकि तथ्य यह है कि तेल के नये स्रोतों की संख्या लगातार घट रही है.

रेत से सना तेल भंडार मिला

कैनडा में तेल में सनी रेत का एक विशाल भंडार ज़रूर मिला है. लेकिन, इस रेत को अलग कर शुद्ध तेल पाने के लिए जिस भारी मात्रा में पानी और बिजली की ज़रूरत पड़ेगी, उसे देखते हुए विशेषज्ञ ऐसा करना पर्यावरण की हत्या करना मानते हैं. यदि इस हत्या का फै़सला कर भी लिया गया, तब भी वैश्विक आवश्यकता के केवल 8 प्रतिशत की ही आपूर्ति संभव हो पायेगी. ऐसे में, फ़ेथ बाइरल के शब्दों में, एक ही रास्ता बचता हैः "इस के पहले कि तेल हमें छोड़ दे, हमें तेल को छोड़ देना होगा."

तुकबंदी अच्छी है और बात सही भी, लेकिन फिलहाल व्यावहारिक नहीं. आज 70 प्रतिशत तेल हमारे तरह-तरह के वाहनों की गतिशीलता को बनाए रखने में ख़र्च होता है. जर्मनी की फ़ोल्क्सवागन जैसी कारनिर्मात कंपनियों का तो यहां तक कहना है कि अगले 20 वर्षों में भी पेट्रोल और डीज़ल का ही राज रहेगा.

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सूडान में तेल की खोज में चीनी सबसे आगे हैंतस्वीर: AP

चार सुझाव

कारों, विमानों और पानी के जहाज़ों की बात छेड़ भी दें, तब भी हम पाते हैं कि हमारे कल-कारख़ानों में जों भी चीजें बनती हैं, उन में से 90 प्रतिशत प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से तेल पर आधारित होती हैं. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के सलाहकार रहे ऊर्जा-विशेषज्ञ मैथ्यू साइमन्स दुनिया को भावी तेल-संकट से बचाने के लिए चार सुझाव देते हैं:

"हमें सफ़र करना कम कर देना चाहिये. लोगों को उनकी उत्पादकता के अनुसार वेतन देना और प्रोत्साहन देना चाहिये कि वे जहां चाहें, वहां रह कर काम करें. उनकी कार्य-उत्पादकता जितनी ज़्यादा होगी, उन्हें वेतन भी उसी हिसाब से अधिक मिलेगा. दूसरी चीज़, हमें खाद्यसामग्री स्थानीय स्तर पर पैदा करनी चाहिये. चीज़ें दूर भेजने या मंगाने से पहले हमें इस में लगने वाले इंधन की मात्रा घटाने के बारे में सोचना चाहिये. अंतिम बात यह कि हमें तैयारशुदा माल का वैश्वीकरण रोकना होगा. यदि हम ये चारों चीज़ें एकसाथ कर पाये, तो भावी तेल संकट को आधी सदी के लिए और टाल सकते हैं."

रिपोर्ट- युर्गन वेबरमान / राम यादव

संपादन- उज्ज्वल भट्टाचार्य